टेलिकॉम कंपनियों को एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) बकाए मामले में राहत मिल सकती है। दबाव में चल रहे टेलिकॉम ऑपरेटरों को सरकार की ओर से बेलआउट पैकेज मिल सकता है। रविवार को दूरसंचार मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और नीति आयोग समेत विभिन्न मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच हुई बैठक में टेलिकॉम कंपनियों को बेलआउट पैकेज पर सहमति बनती दिखाई दी। गौरतलब है कि सरकार भी एजीआर भुगतान मामले में संतुलन की कोशिश कर रही है। कई टेलिकॉम कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद एजीआर बकाए को लेकर दूरसंचार विभाग को धनराशि मुहैय्या कराना शुरू कर दिया है। हाल ही में टेलिकॉम कंपनियों के शीर्ष मुख्य अधिकारियों ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात भी की थी। बता दें कि, टेलीकॉम कंपनियां काफी समय से करों में छूट की मांग कर रही हैं।
मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक, बैठक में टेलिकॉम कंपनियों को एजीआर बकाए पर राहत देने के मामले में किसी अंतिम फैसले के मामले में किसी अंतिम फैसले पर नहीं पहुंचा जा सका, लेकिन कंपनियों को राहत देने के लिए एक बेलआउट पैकेज पर सहमति बनती नजर आई। बता दें कि बेलआउट पैकेज के तहत टेलिकॉम कंपनियों को सरकार की तरफ से कम ब्याज दरों पर सॉफ्ट लोन की व्यवस्था की जा सकती है। सूत्रों के मुताबिक बैठक में इस बात पर भी चर्चा की गई कि एजीआर बकाया चुकाने की वजह से टेलिकॉम कंपनियों के बंद होने की स्थिति में देश में किसी एक कंपनी का एकाधिकार हो सकता है या फिर टेलिकॉम बाजार में सिर्फ दो ही खिलाड़ी रह जाएंगे। सूत्रों के मुताबिक सरकार का मानना है कि दोनों ही स्थिति टेलिकॉम बाजार के लिए अच्छी नहीं है। ऐसे में, 17 मार्च (सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई) से पहले बेलआउट पैकेज पर अंति फैसला लिया जा सकता है।
जियो ने सबसे पहले क्लियर किया AGR ऋण
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की सबसे बड़ी टेलिकॉम रिलायंस जियो ने अपने AGR ऋण को क्लियर करने के लिए टेलिकॉम डिपोर्टमेंट को 195 रूपए करोड़ रुपए का भुगतान किया है। इसका मतलब ये है कि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक जियो ऑपरेटर सबसे पहला ऐसा ऑपरेटर है जिसने अपने ड्यूस को क्लियर कर दिया है। भुगतान की गई राशि में जनवरी 2020 की एडवांस मनी भी शामिल है।
विदेशी टेलीकॉम वेंडर्स के लिए भारत आना होगा मुश्किल
टेलीकॉम उपकरण कारोबार में जैसे को तैसा की नीति पर बढ़ते हुए सरकार ने कहा है कि उन देशों की कंपनियों को भारत में कारोबार की इजाजत नहीं दी जाएगी, जो भारतीय कंपनियों के लिए बाजार नहीं खोलती हैं। यह फैसला सरकारी खरीद आदेश, 2017 के तहत आया है। इस कदम से स्थानीय मैन्यूफैक्चर्स को बढ़ावा देते हुए 'मेक इन इंडिया' को प्रोत्साहन मिलेगा। दूरसंचार उपकरणों का बाजार काफी बड़ा है। इसमें वाई-फाई, फिक्स्ड लाइन, सेल्युलर नेटवर्क और 5जी सेवाओं से जुड़े उपकरणों की खरीद-फरोख्त शामिल है। दूरसंचार विभाग ने सभी सरकारी विभागों को नोटिस जारी करके इस बारे में सूचना दी है।
नोटिस के मुताबिक कोई भी विदेशी सरकार जो भारतीय टेलीकॉम वेंडर्स को अपने बाजार में प्रतिस्पर्धा का मौका नहीं देती है, उसके टेलीकॉम वेंडर्स से किसी तरह का सौदा नहीं किया जाए। अगर नोडल एजेंसी को ज्ञात होता है कि किसी देश द्वारा भारतीय कंपनियों को खरीद प्रक्रिया में जगह नहीं दी गई है तो वह उसकी कंपनियों को बोली से बाहर कर सकती है या अयोग्य ठहरा सकती है। टेलीकॉम उपकरणों के मामले में दूरसंचार विभाग नोडल एजेंसी के रूप में काम करता है।